Thursday, November 21, 2024

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विजयन्तीमाला: सिनेमा की दुनिया की शान

विजयन्तीमाला बाली, जिनका जन्म 13 अगस्त 1933 को चेन्नई के त्रिप्लिकेन इलाके में हुआ था, भारतीय सिनेमा की एक ऐसी शख्सियत हैं, जिन्होंने अभिनय और नृत्य के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई। एक तमिल आयंगर ब्राह्मण परिवार में जन्मी विजयन्तीमाला का बचपन बहुत ही संस्कारी और परंपरागत माहौल में बीता। उनकी मां, वसुंधरा देवी, तमिल सिनेमा की मशहूर अभिनेत्री थीं, जिनकी फिल्म “मंगामा सबथम” ने बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा दिया था।

विजयन्तीमाला का अभिनय करियर 16 साल की उम्र में तमिल फिल्म “वाज़्कई” (1949) से शुरू हुआ। इसके बाद उन्होंने तेलुगु फिल्म “जीविथम” (1950) में भी काम किया। लेकिन हिंदी सिनेमा में उनका पहला कदम फिल्म “बहार” (1951) के साथ पड़ा। इस फिल्म में उनकी अदाकारी को खूब सराहा गया और इसके बाद आई रोमांटिक फिल्म “नागिन” (1954) ने उन्हें रातों-रात स्टार बना दिया।

1955 में आई फिल्म “देवदास” में चंद्रमुखी के किरदार ने उन्हें सिनेमा जगत की एक महान अभिनेत्री के रूप में स्थापित कर दिया। इस फिल्म के लिए उन्हें फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का पुरस्कार मिला, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया क्योंकि उनका मानना था कि उनका किरदार किसी भी मुख्य भूमिका से कम नहीं था।

विजयन्तीमाला ने “नया दौर” (1957), “साधना” (1958), और “मधुमती” (1958) जैसी फिल्मों में अपनी शानदार अदाकारी से दर्शकों का दिल जीता। 1960 के दशक में, उन्होंने “गंगा जमुना” (1961) में धन्नो का किरदार निभाया, जिसके लिए उन्हें फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला। इसके बाद आई “संगम” (1964) और “अमरपाली” (1966) जैसी फिल्मों ने उनके करियर को नई ऊँचाइयों पर पहुंचा दिया।

1968 में, विजयन्तीमाला को भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया। इसके बाद, 1970 में उन्होंने फिल्म “गंवार” के साथ अभिनय की दुनिया को अलविदा कह दिया और पूरी तरह से भरतनाट्यम नृत्य में अपनी पहचान बनाई। उनकी नृत्य कला के लिए उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी नवाजा गया। 2024 में, उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया, जो उनके महान योगदान का प्रतीक है।

उनकी निजी जिंदगी भी सिनेमा की तरह ही चर्चाओं में रही। दिलीप कुमार और राज कपूर के साथ उनके रिश्तों को लेकर कई विवाद हुए, लेकिन विजयन्तीमाला ने हमेशा अपने काम को प्राथमिकता दी। 1968 में उन्होंने चमनलाल बाली से शादी की और अभिनय से संन्यास ले लिया।

उनकी जीवनी “बॉन्डिंग” में उन्होंने अपने जीवन के हर पहलू को खुलकर बयां किया है, जो उनकी सच्चाई और आत्मविश्वास को दर्शाता है। विजयन्तीमाला न केवल एक महान अभिनेत्री और नृत्यांगना हैं, बल्कि एक प्रेरणादायक शख्सियत भी हैं, जिन्होंने अपने जीवन को अपने तरीके से जिया।

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