जीतेन्द्र के पिता एक बिजनेसमैन थे और उनका काम नकली गहने बनाने का था. उनका ज्यादातर काम फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ा था. जीतेंद्र को फिल्म करियर तक ले जाने वाला उनके पिता का बिजनेस ही था. दरअसल एक बार जीतेंद्र वी.शांताराम को जूलरी डिलिवर करने गए थे. इसी मुलाकात के बाद शांताराम ने जीतेंद्र को 1963 की फिल्म ‘सहरा’ में संध्या शांताराम के बॉडी डबल का काम दे दिया.
जीतेंद्र ने कपिल शर्मा के शो पर बताया था कि उनके और संध्या के लुक्स में समानता होने की वजह से बॉडी डबल का काम दिया गया था. इसके बाद जीतेंद्र ने वी.शांताराम की फिल्म ‘गीत गाया पत्थरों ने’ से बतौर हीरो फिल्मों में एंट्री ली और इसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. रिपोर्ट्स के मुताबिक एक्टर ने अपनी पहली फिल्म महज 100 रुपये में साइन की थी. हालांकि रविकांत नगाइच की जासूसी थ्रिलर फर्ज में काम करने के बाद जीतेंद्र ने खुद को बॉलीवुड में एक स्टार के रूप में स्थापित किया. 1969 में उन्होंने जीने की राह, जिगरी दोस्त और वारिस के साथ हिट फिल्मों की हैट्रिक दी. इसके बाद उन्होंने बिदाई, खिलोना, हमजोली, खुशबू, उधार का सिन्दूर, धरम वीर, अपनापन, दिल और दीवार और स्वर्ग नरक जैसी कई हिट फिल्में दीं