1984 में आमिर खान की पहली फिल्म आई, होली। ये फिल्म कब आई और कब गई किसी को पता ही नही लगा। कुछ साल बाद आमिर ख़ान के चचेरे भाई मंसूर खान ने अपने पिता नासिर हुसैन से बात की कि आमिर को लॉन्च करना चाहिए। नासिर हुसैन को भी अपने बेटे मंसूर खान की बात सही लगी और तय किया गया की एक कम बजट की फिल्म बनाएंगे। फिल्म के लिए आमिर खान की ही तरह अपनी दूसरी फिल्म करने जा रही एक लड़की जूही चावला को मुख्य अभिनेत्री के लिए चुना गया। कम से कम पैसा लगाकर फिल्म बनाई गई, कयामत से कयामत तक।
फिल्म बनकर जब तैयार हो गई तो बारी आई फिल्म के प्रमोशन की। क्योंकि फिल्म काफी कम बजट में बनी थी इसलिए अधिक पैसा लगा कर प्रमोशन नहीं कर सकते थे । लेकिन बिना प्रमोशन के काम भी नहीं चलता क्योंकि दोनों कलाकार जनता के लिए एक तरह से नए थे। फिल्म के प्रमोशन की जिम्मेदारी खुद आमिर खान ने संभाली और ये तय किया गया मुंबई में चलने वाले जितने भी ऑटो है, जितना हो सके ज्यादा से ज्यादा ऑटो पर फिल्म के स्टीकर चिपकाएंगे।
फिर क्या था आमिर अपने दोस्तो के साथ निकल पड़ते और जो कोई भी ऑटो दिखता उसपर फिल्म का स्टिकर चिपकाकर ऑटो चलाने वाले से बोलते की भाई मैं इस फिल्म का हीरो हूं, मेरी फिल्म देखने जरूर आना। ज्यादातर बोल भी देते की हम जरूर देखने आएंगे। एक दिन आमिर और उसके दोस्त बांद्रा रेलवे स्टेशन पहुंचे जिधर लाइन से ऑटो वाले खड़े रहते है। वो सब ऑटो पर स्टिकर चिपका ही रहे थे कि एक ऑटो का ड्राइवर भड़क गया ।
आमिर ने उससे सॉरी भी बोला पर वो बदतमीजी और गालियां देने लगा। इतने में आमिर के दोस्त भाग कर आए और उस ड्राइवर को समझाने लगे। किसी तरह मामला शांत तो हो गया पर वो ड्राइवर ने अपने ऑटो से फिल्म का स्टीकर नोंच कर निकाल दिया। आमिर खान को बहुत दुख हुआ, दिल टूट गया और मायूस होकर घर लौट आया । लेकिन ये मायूसी अधिक दिन नही रही क्योंकि जब फिल्म रिलीज हुई तो फिल्म ने कामयाबी का रिकॉर्ड बना दिए। फिल्म को 8 फिल्मफेयर अवार्ड और 2 राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले।