सलीम-जावेद की जोड़ी को भारतीय सिनेमा की सबसे सफल और प्रभावशाली लेखक जोड़ी माना जाता है। इन दोनों ने 1970 और 1980 के दशक में भारतीय फिल्म इंडस्ट्री को न केवल ब्लॉकबस्टर फिल्में दीं, बल्कि राइटर्स के लिए एक नया मानदंड भी स्थापित किया।
सलीम-जावेद की फिल्में और सफलता
सलीम खान और जावेद अख्तर ने मिलकर लगभग 24 फिल्में लिखीं, जिनमें से 22 फिल्में ब्लॉकबस्टर साबित हुईं। ‘यादों की बारात’, ‘जंजीर’, ‘दीवार’, और ‘शोले’ जैसी फिल्मों ने न केवल बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचाया, बल्कि इन फिल्मों ने अमिताभ बच्चन को ‘एंग्री यंग मैन’ के रूप में भी स्थापित किया। सलीम-जावेद ने अपनी कहानियों में दमदार संवाद, सशक्त किरदार और गहरी भावनाओं को इस कदर पिरोया कि वे फिल्में भारतीय सिनेमा की धरोहर बन गईं।
राइटर्स के रूप में सलीम-जावेद का महत्त्व
भारतीय सिनेमा में राइटर्स को अक्सर वह महत्व नहीं दिया जाता, जो उन्हें मिलना चाहिए। लेकिन सलीम-जावेद की जोड़ी इस धारणा को तोड़ने में सफल रही। उनकी लेखनी ने यह साबित कर दिया कि एक फिल्म की रीढ़ उसकी कहानी और संवाद ही होते हैं। उन्होंने राइटर्स के प्रति इंडस्ट्री के दृष्टिकोण को पूरी तरह से बदल दिया।
फीस के मामले में सलीम-जावेद का रिकॉर्ड
1970 के दशक में, जब सलीम-जावेद की जोड़ी अपनी पॉपुलैरिटी के चरम पर थी, तो वे एक फिल्म के लिए 21 लाख रुपये की फीस लेते थे। यह फीस उस समय के सबसे हाईएस्ट पेड एक्टर अमिताभ बच्चन की फीस से भी ज्यादा थी, जो 20 लाख रुपये थी। उस समय राजेश खन्ना 12 लाख रुपये और शत्रुघ्न सिन्हा 10 लाख रुपये फीस लेते थे।
सलीम-जावेद की विरासत
सलीम-जावेद की फीस का यह आंकड़ा न केवल उनके कद और महत्व को दर्शाता है, बल्कि यह भी साबित करता है कि उनके बिना उस समय की हिंदी फिल्में अधूरी होतीं। उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में लेखकों के लिए एक नया मील का पत्थर स्थापित किया, और यह दिखाया कि एक लेखक भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि एक अभिनेता।
उनकी इस सफलता ने राइटर्स के लिए एक नई राह खोली, जिसमें लेखकों को न केवल उचित सम्मान मिला, बल्कि उनकी कला का सही मूल्यांकन भी हुआ। सलीम-जावेद की जोड़ी ने न केवल फिल्मों को बल्कि पूरी फिल्म इंडस्ट्री को बदलकर रख दिया।