सुरेश वाडकर जी के जीवन और करियर की यह कहानी संगीत प्रेमियों के लिए प्रेरणा है। उनके सफर ने यह साबित किया कि कठिन परिश्रम और प्रतिभा का मिलाजुला रूप ही किसी कलाकार को उसकी पहचान दिलाता है।
आइये रूबरू होते हैं उनके बेमिसाल सफ़र से
सुरेश वाडकर का प्रारंभिक जीवन:
- सुरेश वाडकर का जन्म 7 अगस्त 1955 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर में हुआ था। जब सुरेश जी छोटे थे, उनके पिता अपने परिवार को लेकर गिरगांव शिफ्ट हो गए थे। उनके पिता एक कपड़ा मिल में नौकरी करते थे, जबकि उनकी माँ मिल के वर्कर्स के लिए खाना बनाती थीं।
संगीत की शिक्षा और पहलवानी:
- सुरेश वाडकर ने छोटी उम्र से ही संगीत सीखना शुरू कर दिया था। युवावस्था में वे पहलवानी भी किया करते थे। उन्हें कई गुरुओं से संगीत की शिक्षा प्राप्त करने का मौका मिला, जिससे उनकी संगीत कला को एक नई दिशा मिली।
राज कपूर और नई आवाज़ की तलाश:
- 1980 के दशक की शुरुआत में, राज कपूर अपनी फिल्म ‘प्रेम रोग’ के लिए एक नई आवाज़ की तलाश में थे। वह चाहते थे कि उनकी फिल्म के गाने में एक अलग ताजगी और एक नई पहचान हो।
लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का सुझाव:
- म्यूज़िक डायरेक्टर लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने सुरेश वाडकर का नाम सुझाया। उन्होंने राज कपूर को सुरेश वाडकर की गायकी सुनने की सलाह दी। इसके बाद उन्होंने फिल्म ‘प्यासा सावन’ का गीत “मेघा रे मेघा रे” सुनाया, जो सुरेश वाडकर और लता मंगेशकर ने गाया था।
राज कपूर से पहली मुलाकात:
- राज कपूर को सुरेश वाडकर की आवाज़ पसंद आ गई, और उन्होंने उन्हें मिलने का बुलावा भेजा। अगले दिन, सुरेश वाडकर लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के सिटिंग रूम में पहुंचे, जहाँ उनकी पहली मुलाकात राज कपूर से हुई। राज कपूर ने सुरेश वाडकर से बहुत अच्छे से बात की और उन्हें ‘प्रेम रोग’ के लिए साइन कर लिया।
करियर का टर्निंग पॉइन्ट:
- ‘प्रेम रोग’ के गीत गाने का मौका सुरेश वाडकर के करियर के लिए एक बड़ा टर्निंग पॉइन्ट साबित हुआ। “मैं हूँ प्रेम रोगी” गीत उस समय बहुत लोकप्रिय हुआ और बिनाका गीत माला में पहली पोजीशन पर रहा।
देशव्यापी पहचान:
- ‘प्रेम रोग’ के गीतों ने सुरेश वाडकर को देशव्यापी पहचान दिलाई। हालांकि, उनके कई गीत पहले से ही प्रसिद्ध हो चुके थे, लेकिन ‘प्रेम रोग’ के गीतों ने उन्हें एक नई ऊंचाई पर पहुँचाया।
Facebook Comments