सुधेंदु रॉय का नाम भारतीय सिनेमा में एक ऐसे व्यक्ति के रूप में लिया जाता है, जिन्होंने कला निर्देशन और प्रोडक्शन डिज़ाइनिंग में अद्वितीय योगदान दिया। परंतु उनके जीवन का सफर हमेशा इतना आसान नहीं था।
सुधेंदु रॉय का जन्म 1921 में पाबना (अब बांग्लादेश में) हुआ था। उनके पिता, पुरनचंद्र रॉय, एक वकील थे और चाहते थे कि उनका बेटा भी कानून की पढ़ाई करे। लेकिन सुधेंदु के दिल में कुछ और ही सपने थे। जब उन्होंने अपने पिता से कानून की पढ़ाई के लिए कॉलेज में दाखिला लेने का खर्च मांगा, तो उन्होंने उस पैसे से टिकट खरीदा और कोलकाता भाग गए। वहाँ पहुँचकर उन्होंने कला के क्षेत्र में अपना करियर शुरू किया।
शुरुआत में, सुधेंदु ने एक कमर्शियल आर्टिस्ट के रूप में काम किया और संघर्षों का सामना किया। लेकिन उनका जीवन तब बदला जब उनकी मुलाकात बंगाली सिनेमा के प्रमुख निर्देशक विमल रॉय के भाई और कैमरामैन, परिमल रॉय से हुई। परिमल की मदद से, सुधेंदु ने 1948 में बनी फिल्म ‘अंजनगढ़’ के साथ अपने करियर की शुरुआत की। फिल्म सफल रही और विमल रॉय के साथ सुधेंदु की जोड़ी बनी, जिसने हिंदी सिनेमा में कई महान फिल्मों का निर्माण किया, जैसे ‘मधुमती’, ‘सुजाता’, और ‘बंदिनी’।
1966 में विमल रॉय के निधन के बाद, सुधेंदु ने अपने करियर में एक नया मोड़ लिया। 1971 में, उन्हें ताराचंद बड़जात्या ने अपनी फिल्म ‘उपहार’ के निर्देशन की जिम्मेदारी सौंपी। यह फिल्म रविंद्रनाथ टैगोर की कहानी ‘समाप्ति’ पर आधारित थी और इसे भारत की ओर से ऑस्कर के लिए भी नामांकित किया गया था। इसके बाद, उन्होंने ‘सौदागर’ का निर्देशन किया, जो अमिताभ बच्चन और नूतन की मुख्य भूमिकाओं वाली फिल्म थी।
सुधेंदु का जीवन और करियर अपने आप में एक प्रेरणा है। उन्होंने न सिर्फ अपने सपनों का पीछा किया, बल्कि उन्होंने भारतीय सिनेमा को कई उत्कृष्ट फिल्में भी दीं। उनके योगदान को फिल्मफेयर अवॉर्ड्स से सम्मानित किया गया, लेकिन असली सम्मान उनके उस सफर में है जो उन्होंने अपने दिल की सुनकर शुरू किया था।