मदन मोहन कोहली, जिन्हें मदन मोहन के नाम से जाना जाता है, भारतीय संगीत जगत के उन अनमोल रत्नों में से एक थे जिनकी गज़लों और संगीत ने 1950, 1960 और 1970 के दशकों में हिंदी फिल्म उद्योग को एक नई ऊंचाई पर पहुँचाया। 25 जून 1924 को जन्मे मदन मोहन ने अपने जीवन में कई ऊंचाइयों को छुआ और उनकी रचनाएँ आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों में बसी हुई हैं।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
मदन मोहन का जन्म इराक में हुआ था, जहाँ उनके पिता ब्रिटिश सेना में कार्यरत थे। उनके पिता रतन मोहन कोहली, एक स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने बाद में फिल्म निर्माण का कार्य भी किया। मदन मोहन का परिवार भारत आ गया जब वह छोटे थे, और उनकी प्रारंभिक शिक्षा भारत में ही हुई।
सेना में सेवा
मदन मोहन ने अपने करियर की शुरुआत भारतीय सेना में सेकंड लेफ्टिनेंट के रूप में की। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दो साल तक सेना में सेवा की। लेकिन संगीत के प्रति उनकी रुचि ने उन्हें सेना छोड़ने और अपने सपनों को पूरा करने के लिए मुंबई जाने के लिए प्रेरित किया।
ऑल इंडिया रेडियो और संगीत करियर की शुरुआत
1946 में, उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो, लखनऊ में प्रोग्राम असिस्टेंट के रूप में शामिल हुए, जहाँ उन्होंने उस्ताद फैयाज़ खान, उस्ताद अली अकबर खान, बेगम अख्तर और तलत महमूद जैसे प्रतिष्ठित कलाकारों के साथ काम किया। 1947 में उनका तबादला दिल्ली कर दिया गया। यहीं से उन्होंने संगीत की दुनिया में अपना सफर शुरू किया।
गज़लें और शुरुआती गाने
1947 में, मदन मोहन ने अपनी पहली दो गज़लें रिकॉर्ड कीं – “आने लगा है कोई नज़र जलवा गर मुझे” और “इस राज़ को दुनिया जानती है”। 1948 में उन्होंने दो और गज़लें रिकॉर्ड कीं – “वो आए तो महफ़िल में इठलाते हुए आए” और “दुनिया मुझे कहती है के मैं तुझको भूला दूं”।
फिल्मी करियर की शुरुआत
1948 में, उन्होंने संगीतकार गुलाम हैदर के साथ काम किया और लता मंगेशकर के साथ फिल्म “शहीद” के लिए गाने रिकॉर्ड किए। उन्होंने 1946 से 1948 तक संगीतकार एस.डी. बर्मन और श्याम सुंदर के लिए सहायक के रूप में भी काम किया।
करियर की ऊँचाइयाँ
मदन मोहन ने कई हिट फिल्में दीं और उनकी गज़लें आज भी बेहद लोकप्रिय हैं। उनके कुछ बेहतरीन काम लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी और तलत महमूद के साथ हैं। उनके संगीत की मिठास और गहराई ने उन्हें संगीत प्रेमियों के दिलों में अमर कर दिया है।
वीर-ज़ारा और विरासत
2004 में, उनके बेटे संजीव कोहली ने उनकी अप्रयुक्त धुनों को यश चोपड़ा की फिल्म “वीर-ज़ारा” के लिए पुनः तैयार किया। इस फिल्म का संगीत बेहद सफल रहा और मदन मोहन को मरणोपरांत 2005 में आईफा पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
आधुनिक संदर्भ
2023 में, प्रीतम ने “झुमका गिरा रे” के मदन मोहन के मूल गीत से प्रेरित होकर “व्हाट झुमका?” गाना रचा, जो फिल्म “रॉकी और रानी की प्रेम कहानी” में शामिल किया गया। यह गीत भी बेहद लोकप्रिय हुआ।
मदन मोहन का योगदान भारतीय संगीत में अतुलनीय है। उनकी रचनाएँ आज भी लोगों के दिलों में बसी हुई हैं और संगीत की दुनिया में उनकी जगह हमेशा अमिट रहेगी।