धर्मेंद्र जी ने बीबीसी हिंदी के साथ बातचीत में बताया है, “जब मुंबई अभिनेता बनने आया तब मेरी एक ही इच्छा थी कि दिलीप साहब से एक मुलाक़ात हो जाए. तब एलपी राव एक संपादक थे. एक दिन किसी जगह पर उन्होंने मुझे कहा कि तुम्हें पता है ये जो महिला यहाँ खड़ी हैं वो कौन है? मैंने पूछा कौन हैं? तब उन्होंने बताया कि ये दिलीप साहब की बहन हैं. इनका नाम फ़रीदा है.”
“ये सुनने के बाद मुझे लगा कि मैं कब इनसे कहूँ कि मुझे दिलीप साहब से एक बार मिला दें. मैं अपनी हिचक मिटाते हुए उनके पास गया और कहा कि मैं दिलीप साहब का बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ. मुझे बस एक बार उनसे मिला दीजिए. तब उन्होंने मुझसे कहा कि कल शाम 8.30 बजे आ जाइए.”
“अगले दिन मुझसे इंतज़ार ही नहीं हो रहा था. मुझे लग रहा था कि ये शाम कब होगी? कब मैं उनसे मुलाक़ात करूँगा. ये 1960 की बात है. शाम को उनके घर गया. उन दिनों शाम को मुंबई के पाली हिल इलाके में ठंड हो जाया करती थी. जल्दबाज़ी और मिलने की ख़ुशी में मैं स्वेटर पहनना भूल गया था. मिलने के बाद उन्होंने मुझे अपना एक स्वेटर लाकर दिया और कहा ये पहन लो.”
“मैंने पहना और कहा मैं आपको ये स्वेटर कभी वापस नहीं दूंगा. उन्होंने ये सुनने के बाद कहा ज़रूर रख लो इसे. इसके बाद तो फिर वो ईद हो या उनका जन्मदिन हो मैं उनके घर अक्सर जाया करता था.”