Friday, April 26, 2024

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गाइड ‘ : संवेदना के सूक्ष्म रेशे से बुनी गयी प्रेम कहानी- भाग 2

Bollywood nostalgic story in Hindi


सुनील सिंह की कलम से – भाग 2


जब लेखक से फ़िल्म बनाने का अनुमति पत्र लेने देव आनंद श्री नारायण के पास गये तो ब्लेंक चेक सामने रख दिया । कहा – आप जो रकम भर दें । नारायण ने चेकबुक देव आनंद को वापस कर दिया । कहा – अगर फ़िल्म हिट होती है तो मुनाफे का एक प्रतिशत , बस।
1970 के दशक में ‘इलस्ट्रेटेड वीकली ‘ में नारायण की आत्मकथा ‘ my days’ शीर्षक से धारावाहिक प्रकाशित हो रही थी । श्री नारायण ने ये वाक्या आत्मकथा में लिखा था । वे फ़िल्म से संतुष्ट नहीं थे – मैंने सोचा था , नायिका कोई लोकल नर्तकी होगी । लेकिन , नायिका फाइव स्टार होटल में ठहरी थी .. और बातें !
लेकिन , हमारे हिसाब से स्टारकास्ट फर्स्ट क्लास था । वहीदा रहमान के अलावा किसी और नायिका का खयाल आता ही नहीं था ।
मार्को की भूमिका में किशोर साहू थे । ये पुराने हीरो थे । मेरे घर एक 1945 का फ़िल्मफ़ेअर पड़ा था । उसमें किशोर साहू का बतौर नायक अभिनीत फिल्म ‘ मयूरपंख ‘ का पूरे पेज का विज्ञापन था । किशोर साहू ने अपनी इस भूमिका के साथ न्याय किया था । और किशोर साहू भुलाये नहीं भूलते ।
अंग्रेजी गाइड के निदेशक कोई और थे , हिंदी के विजय आनंद । एस्थेटिक सेंस की बात करें तो ये तीन निदेशकों में जबरदस्त था – गुरुदत्त , विजय आनंद और यश चोपड़ा । पहले दोनों का बतौर निदेशक जीवन बहुत बड़ा नहीं था । लेकिन , यश चोपड़ा ने लंबी पारी खेली ।
शूटिंग अंग्रेजी और हिंदी दोनों फिल्मों की एक साथ होती थी । पहले हिंदी गाइड के शॉट्स ले लिए जाते थे , इसके बाद अंग्रेजी के ।
रेडियो सीलोन पर गाइड फ़िल्म के गाने आने शुरू हो गये थे । बर्मन दा का सुमधुर संगीत था , शैलेन्द्र के उत्कृष्ट गीत ।
बर्मन दा में एक खास बात यह थी कि उनके गीतों के अंतरे में जो आर्केस्ट्रा होता था , उसे भी गुनगुनाया जा सकता था ।उदाहरण के लिए गाइड फ़िल्म का गीत – तेरे मेरे सपने अब एक रंग हैं । पहले अन्तरे में सुमधुर वायलिन , आप आराम से गुनगुना सकते हैं ।’ गाता रहे मेरा दिल ‘ का सेक्सोफोन – आप गुनगुना सकते हैं । फ़िल्म ‘बात एक रात की’ का गीत – न हम तुम्हें जानें , इसके दोनों अन्तरे सुरीले हैं और गुनगुनाये जाने लायक ।
‘ गाइड ‘ में दो गीत एक के बाद तुरंत दूसरा , एक साथ आते हैं । पहले वहीदा का – मोसे छल किये जाये और इसके तुरंत बाद – क्या से क्या हो गया । ‘मोसे छल ‘ का तो मुझे पता है – ये राग झिंझोटी है । लेकिन , जावेद अख्तर साहब ने अद्भुत बात बतायी – दोनों गानों की धुन एक ही है । ये बर्मन साहब का कमाल है कि श्रोताओं को पता नहीं चलता ।
ये 1966 था।


जारी

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