Wednesday, July 3, 2024

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खुदा गवाह (1978): अधूरी रह गई मनमोहन देसाई की तमन्ना

परिचय

1978 में बनी “खुदा गवाह” एक महत्वाकांक्षी एक्शन-एडवेंचर फिल्म थी, जिसमें महानायक अमिताभ बच्चन को हीरो और विलेन दोनों के दोहरे किरदार में दिखाने की योजना थी। उनके विपरीत खूबसूरत परवीन बाबी को कास्ट किया गया था। इस फिल्म ने काफी चर्चा बटोरी थी, लेकिन कमजोर पटकथा और बेदम निर्देशन के कारण यह फिल्म 60-70% शूटिंग पूरी होने के बावजूद अधूरी रह गई।

मुख्य विशेषताएं

  • अमिताभ बच्चन का दोहरा किरदार: इस फिल्म की सबसे खास बात अमिताभ बच्चन का हीरो और विलेन दोनों के किरदार निभाना था, जो उनकी अद्भुत अभिनय क्षमता और बहुमुखी प्रतिभा को दर्शाता है।
  • निर्माण दल: इस फिल्म का निर्माण सुभाष देसाई ने किया था और इसका निर्देशन सुरेंद्र मोहन ने किया था, जो दोनों ही फिल्म इंडस्ट्री के प्रमुख हस्तियों में से हैं।
  • अभिनय टीम:इस टीम में शामिल थे अमिताभ बच्चन,ऋषि कपूर,परवीन बाबी,बिंदिया गोस्वामी,मुकरी और अमजद ख़ान

बंद होने का कारण

पहला कारण

दरअसल मनमोहन देसाई की देशप्रेमी के समय ही ख़ुदा गवाह की शूटिंग चल रही थी.मन जी के भई सुबह देसाई इसके निर्माण की ज़िम्मेदारी उठाये हुए थे..जब मनमोहन देसाई को लगा कि दोनों फ़िल्म के साथ बनाने से देशप्रेमी जो उनकी एक महत्वाकांक्षी फ़िल्म थी,उसपर असर पद रहा है तो उन्होंने अपने भाई से कहकर ख़ुदा गवाह की शूटिंग ताल दी.देशप्रेमी तो बनकर रिलीज़ हो गई और सफल भी हो गई लेकिन खुद गवाह फिर कभी शुरू नहीं हो पायी.

दूसरा कारण

“खुदा गवाह” को मुख्य रूप से कमजोर पटकथा और निर्देशन के कारण बंद कर दिया गया। स्टार-स्टडेड कास्ट और फिल्म के प्रति दर्शकों की उम्मीदों के बावजूद, यह परियोजना रचनात्मक अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरी, जिसके परिणामस्वरूप इसे छोड़ना पड़ा।

रोचक तथ्य

  • मुकुल एस. आनंद द्वारा पुनर्जीवित: चौदह साल बाद, निर्देशक मुकुल एस. आनंद ने इसी शीर्षक “खुदा गवाह” के तहत एक सफल फिल्म बनाई, जिसमें फिर से अमिताभ बच्चन और श्रीदेवी मुख्य भूमिकाओं में थे। इस 1992 के संस्करण में, श्रीदेवी ने दोहरा किरदार निभाया।
  • मनमोहन देसाई द्वारा अनुकूलन: 1985 में, प्रसिद्ध फिल्म निर्माता मनमोहन देसाई ने मूल पटकथा को कुछ परिवर्तनों के साथ अपनाया और अपने बेटे केतन देसाई के निर्देशन में “अल्लाह-रक्खा” नामक फिल्म की घोषणा की।

हालांकि “खुदा गवाह” (1978) कभी पूरी नहीं हो पाई, लेकिन इसके बाद की पुनरावृत्तियों और इसमें शामिल स्टार पावर के माध्यम से इसकी विरासत जीवित रही। इस परियोजना का बंद होना बॉलीवुड के इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण बना हुआ है, जो यह दर्शाता है कि फिल्म निर्माण की अप्रत्याशितता के कारण कभी-कभी सबसे प्रत्याशित परियोजनाएं भी असफल हो सकती हैं।

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