सुभाष घई की फिल्म ‘खलनायक’ का निर्माण एक दिलचस्प प्रक्रिया थी, जो कई बदलावों और विचारों के बाद पूरी हुई। जब सुभाष घई ने फिल्म की कहानी लिखना शुरू किया, तो उनके दिमाग में शुरुआत में नाना पाटेकर थे। घई इस फिल्म को एक आर्ट फिल्म की तरह बनाना चाहते थे, जिसमें नाना पाटेकर जैसे मंझे हुए अभिनेता के साथ एक गंभीर और गहन भूमिका को दिखाया जाए।
लेकिन इस दौरान, सुभाष घई के राइटर ने उन्हें सुझाव दिया कि वे ‘खलनायक’ को एक कमर्शियल और ‘लार्जर देन लाइफ’ फिल्म के रूप में बनाएं, जिससे यह एक व्यापक दर्शक वर्ग को आकर्षित कर सके। घई ने इस सुझाव पर विचार किया और यह महसूस किया कि अगर फिल्म को बड़ा और दर्शकों के लिए ज्यादा आकर्षक बनाना है, तो नाना पाटेकर की जगह किसी और को लेना पड़ेगा।
सुभाष घई शुरू में ‘खलनायक’ के मुख्य किरदार के लिए एक मिडल-एज एक्टर चाहते थे, और इसी वजह से नाना पाटेकर को इस भूमिका के लिए साइन भी कर लिया गया था। लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती गई, घई को महसूस हुआ कि फिल्म के खलनायक के रूप में एक ऐसे युवा अभिनेता की जरूरत है जो एक भटका हुआ, विद्रोही और उग्र व्यक्तित्व हो, जो दर्शकों के साथ तुरंत जुड़ सके।
तभी उन्होंने संजय दत्त को इस भूमिका के लिए चुना। संजय दत्त की युवा छवि, उनकी बागी शैली, और उस समय उनकी लोकप्रियता ने उन्हें इस किरदार के लिए उपयुक्त बना दिया। इस बदलाव के साथ, ‘खलनायक’ एक आर्ट फिल्म से बदलकर एक कमर्शियल ब्लॉकबस्टर फिल्म बन गई, जिसमें संजय दत्त ने अपने जीवन के सबसे यादगार और प्रतिष्ठित किरदारों में से एक को निभाया।