1935 में बनारस के रहने वाले रामप्रसाद मिश्रा जिन्हे अभिनय का शौक था बंबई आए और एक फिल्म कंपनी में नौकरी करने लगे । काम ठीक चलने लगा तो पत्नी को भी बंबई बुला लिया। ये वो समय था जब फिल्मों में औरतों के रोल अधिकतर पुरुष ही किया करते थे क्योंकि समाज में फिल्मों में औरतों का अभिनय करना अच्छा नहीं माना जाता था। इस कारण फिल्मों में अभिनेत्रियों की कमी हुआ करती थी। नासिक की एक फिल्म कंपनी ने रामप्रसाद को तो फिल्म में एक रोल दे दिया साथ ही उनकी पत्नी को भी फिल्म में अभिनेत्री का रोल दे दिया। पत्नी को 500 रुपए महीना और रामप्रसाद को 150 रुपए महीना तनख्वाह । फिल्म थी सती सुलोचना और मिश्रा जी की पत्नी का रोल था मन्नदोत्री का । मेकअप मैन मिश्रा जी की पत्नी का मेकअप करने के लगा तो वो चिल्ला पड़ी। वो मेकअप मैन के साथ साथ अपने पति पर भी गुस्सा हो बैठी की कोई गैर मर्द उसे कैसे छू सकता है। काफी समझाने पर भी जब वो नही मानी तो फिल्म कंपनी ने उन्हें फिल्म से ही निकाल दिया। मिश्रा जी के काफी समझाने के बाद कि ये हकीकत नही सिर्फ सिनेमा है, पत्नी को भी धीरे धीरे बात समझ आने लगी। कुछ दिन बाद एक कोल्हापुर की फिल्म कंपनी ने पत्नी को एक और मौका दिया। तनख्वाह उतनी ही, 500 रुपए महीना और 2 साल का अनुबंध। शूटिंग शुरू हुई और एक सीन में मिश्रा जी की पत्नी को हीरो के गले में हाथ डालकर उसे लुभाना था पर वो इस बार फिर से अड़ गई कि वो किसी पराए मर्द के साथ ऐसा दृश्य नहीं कर सकती। काफी समझाने के बाद भी वो नही मानी तो पत्नी ने वो फिल्म भी छोड़ दी। इसके बाद उनको एक और फिल्म मिली, होनहार। फिल्म कंपनी को मिश्रा जी की पत्नी के बारे में पता था इसलिए उन्हें फिल्म के हीरो शाहू मोंडक की मां का रोल दे दिया ये जानकर भी की उनकी उम्र इतनी नही है कि वो मां का रोल कर सके । ये फिल्म थी और इस फिल्म के बार मिश्रा जी की पत्नी ऐसे ही मां और मौसी दादी के रोल ही करते चली गई और तकरीबन 308 फिल्मों में उन्होंने ऐसे रोल कर डाले। मिश्रा जी की पत्नी का नाम था लीला मिश्रा। शोले की मौसी जी ।
एक अभिनेत्री ने क्यों ठुकरा दिए दो बार फिल्म में मुख्य हीरोइन के रोल ?
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